वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत है माण्डू

मध्य प्रदेश का प्राचीनतम शहर माण्डू पर्यटन की दृष्टि से एशिया स्तर पर सर्वोत्तम माना जाता है। यह शहर न सिर्फ ऐतिहासिक है, अपितु यहां के भवन वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत कहे जाते हैं। अगर कभी पत्थरों के जरिए इतिहास को जानने का मन करे, तो मांडू घूमने की तैयारी कर लें। वैसे, अपने माहौल व खूबसूरती के चलते यह बसने के साथ ही श्खुशियों के शहरश् के नाम के साथ इतरा रहा है।

मध्य प्रदेश का मांडू विंध्याचल पहाड़ियों में बसा है। 13वीं शताब्दी के अंत में इसे मालवा के राजा ने बसाकर इसे शदियाबाद यानी खुशियों के शहर का नाम दिया। इसके बाद इस पर राज करने वाले हर शासक ने इसे किसी न किसी खास इमारत का तोहफा दिया। इन खास इमारतों में से कुछ बाज बहादुर और रानी रूपमति की प्रेम कहानी भी पूरे दिल से सुनाती हैं।
मालवा के पठार क्षेत्र में बसा माण्डू पूर्वी देशातंर रेखा से 75 डिग्री-25 डिग्री व उत्तरी अक्षांश से 22 डिग्री 15 डिग्री पर विध्यांचल के दक्षिण किनारे पर स्थित है। यह समुद्री तल से 633.7 मीटर ऊंचाई पर अपने आभा मण्डल से पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है।
माण्डू की सबसे बड़ी पहचान यहां का दुर्ग है जो क्षेत्रफल की दृष्टि से चित्तौड़ के दुर्ग से भी बड़ा है। इस दुर्ग की परिधि 23.3 किमी है जिसके अंदर का भाग टापू जैसा दिखाई पड़ता है। इसके चारों तरफ परकोटे बने हुए है। दुर्ग के पर्वतीय किनारे की तरफ 30 फीट ऊंचाई की दीवार बनी हुई है जो वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
छठी एवं सातवीं शताब्दी में महाराज हर्षवर्धन ने चीनी यात्री ह्यड्ढेनसांग की सहायता से यहां संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह विश्वविद्यालय भवन अशर्फी महल के नाम से विख्यात है। यहां के कई भव्य भवन जहां जैन पंथ के आधिपत्य का एहसास कराते हैं, वहीं परमार एवं मुगल शासकों द्वारा यहां वास्तुकला की बेजोड़ कारीगरी का प्रदर्शन करती इमारतें बनवाई गई।
माण्डू को अतीत में तीन सौ वर्षों तक राजधानी के रूप में विकसित होने का भी गौरव प्राप्त है। इस पर पहले परमार शासकों का और फिर लम्बे समय तक मुगल सुल्तानों का साम्राज्य रहा। यहां मौजूद विजय स्तम्भ अपने सात मंजिला स्वरूप में आज भी पर्यटकों का मन मोह लेता है। इसका निर्माण सन् 1436ई. में महमूद खिलजी द्वारा मेवाड़ के राणा के बन्दीगृह से मुक्त होने की खुशी में कराया गया था।
बताया जाता है माण्डू शहर की उत्पत्ति पारस नाम के पत्थर से हुई थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक बार चारा काट रहे मजदूर की द्राती (हंसिया) अचानक पारस रूपी पत्थर से टकराने पर सोने की हो गई थी। मजदूर ने यह पारस एक शिल्पी को दे दिया। शिल्पी से माण्डू के राजा जयदेव सिंह के पास और राजा जयदेव सिंह के पास से राज पुरोहित के पास जाकर बाद में नर्मदा की भेंट चढ़ गया था। पठान वंश के अंतिम शासक बाज बहादुर के ध्रुपद गायिका रूपमती के प्रणय प्रसंगों की स्थली माण्डू में स्मारकों के अम्बार लगे हैं। यहां के 48 स्मारकों को शासकीय संरक्षण पुरातत्व विभाग द्वारा दिया गया है। इन स्मारकों में काकड़ा खोह (सन्त रविदास कुण्ड), सात कोठड़ी, आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, दिल्ली दरवाजा, हाथी पोल दरवाजा, नाहर झरोखा, दिलावर खां की मस्जिद, हमाम घर, नाटक घर, शाही महल, जल महल, हिण्डोला महल, चम्पा बावड़ी, गदाशाह की दुकान, जहाज महल, तवेली महल, गदाशाह महल, होशंगशाह का मकबरा, जामा मस्जिद, अशर्फी महल, श्री दिगम्बर जैन मंदिर, श्रीराम मंदिर, श्रेताम्बर जैन तीर्थ, रूपमती मण्डम्, बाजबहादुर महल, दाई का महल, रेवा कुण्ड, मलिक मुगीथ मस्जिद, नीलकंठ मंदिर, दरियां खां का मकबरा, केनवान सराय, हाथी पगा महल, चिश्ती खां महल, बूढ़ी माण्डू, छप्पन महल, आल्हा उदल की सांग, सोनगढ़ दरवाजा, रामगोपाल दरवाजा, लवानी गुफा, लाल बंगला, मुन्ज सागर, भगवान्या दरवाजा आदि अनेक स्मारक भवन ऐसे हैं जो इतिहास की न सिर्फ धरोहर है अपितु पर्यटकों, इतिहासकारों तथा वास्तुकला प्रेमियों के लिए ज्ञान का भण्डार भी हैं।
यही वह स्थली है जहां बांव वांन फल पाया जाता है। यह फल एक विशेष प्रकार की इमली है जिसके खाने से प्यास बुझ जाती है इसीलिए इस इमली का उपयोग रेगिस्तान में बहुतायत में किया जाता है। माण्डू की दिलावर खां की मस्जिद की विशेषता कुछ अलग ही है। यह मस्जिद लाल पत्थर से शिल्पकारों द्वारा हिंदू शैली में बनाई हुई है। इसके स्तम्भों में कमल, बेलबूटे, घण्टी चित्र तराशे हुए हैं। इस मस्जिद में महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना गया है। जबकि ग्यासशाह खिलजी द्वारा काले पत्थर से बनवाया गया शाही महल पुरातन काल का वातानुकूलित महल है जिसको ठण्डा रखने के लिए दीवारों के बीच से पानी की पाइप लाइन ले जाई गई थी।

क्या देखें
दरवाजे

मांडू लगभग 45 किलोमीटर लंबी दीवारों से घिरा है और इनमें 12 दरवाजे हैं। इनमें मुख्य है दिल्ली दरवाजा, जहां तक पहुंचने के लिए कई और दरवाजों से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा, रामपोल दरवाजा, जहांगीर गेट और तारापुर गेट भी देखने लायक हैं।
जहाज महल
जहाज की शेप में बना यह महल 120 मीटर लंबा है। खूबसूरत व दो मंजिला यह महल दो आर्टिफिशल लेक्स, मुंज तालाब व कापुर तालाब के बीच में है। कहा जाता है कि इसे सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने अपने हरम के लिए बनवाया था। पेवेलियन, बालकनी और ओपन टैरेस वाला यह महल पत्थर के जरिए राजसी शानो-शौकत दिखाता है। चांदनी रात में इसे पास स्थित तवेली महल से देखना एक यादगार नजारा पेश करता है।
हिंडोला महल
ग्यासुद्दीन के राज के दौरान बने इस महल को इसका नाम स्लोप वाली दीवारों के चलते मिला। वैसे, इसमें आपको उस समय के हिसाब से कई दिलचस्प तकनीकें देखने को मिलेंगी। इसके पश्चिम में और भी कई इमारते हैं, जिन्हें आज पहचान पाना मुश्किल है, लेकिन इनकी तब की शान आज भी देखी जा सकती है। इसके बीच में शानदार चंपा बावड़ी है, जहां पानी को ठंडे व गर्म करने का अरेंजमेंट भी किया गया है।
कैसे जाएं
मांडू से नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर है, जो दिल्ली व भोपाल से जुड़ा है। यहां से मांडू की दूरी 99 किमी है। अगर ट्रेन से जाना चाहते हैं, इंदौर व रतलाम नजदीकी स्टेशन हैं। रतलाम मांडू से 124 किमी दूर है। वैसे, इंदौर, रतलाम, भोपाल वगैरह से मांडू के लिए अच्छी बस सर्विस है।
कब जाएं
मांडू जाने के लिए जुलाई से मार्च के बीच का वक्त बेस्ट है।

कहां ठहरें
मांडू में रुकने के अच्छे ऑप्शंस उपलब्ध हैं। आप चाहें तो इंदौर को भी अपना हॉल्ट बना सकते हैं।


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