आखिर क्या है कव्वाली विधा
आपने पहले की कई फिल्मों में कव्वाली सुनी होगी, जैसे- ‘ ऐ मेरे जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं …’ , ‘ न सर झुका के जियो … आदि। लेकिन, क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की कि आखिर कव्वाली है क्या! तो आज हम इसी बात पर चर्चा कर रहे हैं। दरअसल, कव्वाली का इतिहास सात सौ साल पुराना है। यह संगीत की लोकप्रिय विधा है, जो आठवीं सदी में ईरान और अफगानिस्तान में गाई जाती थीं। शुरुआती दौर से ही सूफी संगीत में डूबी यह विधा 13वीं सदी में भारत आई। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यही वह इस्लाम का सूफी स्वर था, जिसने उपेक्षित निचली जातियों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाबी पाई। इस कव्वाली का आगाज मुस्लिम धर्म के सूफी पीर फकीरों ने किया। बाद में इसका जगह-जगह आयोजन किया जाने लगा, जिसे समां के नाम से जाना जाने लगा। इस समां का आयोजन धार्मिक विद्वानों की देखरेख में किया जाता था, जिसका मकसद होता था कव्वाली के जरिये ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करना। प्रारंभ में सूफियों ने अमन और सच्चाई की पैगाम पहुंचाने के लिए मौसिकी और समां का सहारा लिया। बाद में इस कव्वाली का पदार्पण भारत में हुआ और भारतीय सूफी संतों ने इसे य...